*श्री राजनाथ सिंह
केन्द्रीय गृहमंत्री, भारत सरकार
केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने देश को सुरक्षित बनाए रखने के लिए श्रृंखलाबद्ध अग्रसक्रिय कदम उठाए हैं। देश का कुल सुरक्षा परिदृश्य छिटपुट घटनाओं को छोड़कर शांतिपूर्ण बना हुआ है। पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकी संगठनों के खिलाफ आतंक विरोधी अभियानों को जारी रखते हुए सुरक्षा स्थिति की विभिन्न स्तरों पर नियमित रूप से निगरानी की जा रही है। वाम चरम पंथ (एलडब्ल्यूई) हिंसा में महत्वपूर्ण रूप से कमी आई है। 2014 और वर्तमान वर्ष के दौरान सुरक्षा बलों ने जम्मू और कश्मीर में 132 आतंकवादियों को निष्प्रभावी कर दिया है। जम्मू-कश्मीर में नवम्बर-दिसम्बर 2014 के दौरान हुए शांतिपूर्ण विधानसभा चुनाव में हुए रिकॉर्ड 66 प्रतिशत मतदान ने दुनिया के समक्ष यह सिद्ध कर दिया है कि एक सहायक माहौल प्रदान किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर की शांतिप्रिय जनता ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपना पूर्ण विश्वास जताया है। सीमा पार आतंकवाद के खतरों से निपटने के लिए सीमाओं पर प्रभावी रूप से प्रबंधन किया जा रहा है।
महिलाओं की सुरक्षा मेरी प्रमुख चिंता रही है। इस वर्ष 1 जनवरी को, दिल्ली पुलिस ने हिम्मत नामक एक एप्लीकेशन का शुभारंभ किया जिसे पंजीकृत मोबाइल फोन महिला उपयोगकर्ताओं से काफी प्रतिक्रियाएं मिलीं और पुलिस ने 5-7 मिनट में उपस्थित होकर इन समस्याओं को निपटाने में मदद की। गृह मंत्रालय ने देश भर में विपत्ति के मामले में महिलाओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली की स्थापना के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। दूरसंचार विभाग ने पहले से ही इस प्रणाली के लिए एक आपातकाल नम्बर ‘112’ आवंटित कर दिया है। पीडि़त अथवा उसके परिजन लैंडलाइन फोन, मोबाइल फोन, एसएमएस, ईमेल, चैट सेवाएं, वॉयसओवर इंटरनेट और मोबाइल ऐप आदि के द्वारा संचार की किसी भी प्रणाली का उपयोग करते हुए ‘112’ प्रणाली पर संपर्क कर सकते हैं। ‘112 प्रणाली’ को प्रतिदिन दस लाख कॉल की व्यवस्था संभालने के योग्य बनाया जा रहा है, जिसके लिए इसके एक बार पूर्ण रूप से कार्यान्वित होने के बाद राज्यों/संघशासित प्रदेशों में इन कॉलों की देखरेख करने के लिए करीब 3,500 कार्मिकों की आवश्यकता होगी। इस परियोजना लागत 321 करोड़ रुपये होगी जिसमें तकनीकी बुनियादी ढांचे की लागत और पांच वर्षों के लिए संचालन और रख-रखाव भी शामिल है।
हमारे देश में पर्यटन के माध्यम से लाखों रोजगारों का सृजन करने और मूल्यवान विदेशी मुद्रा अर्जित करने की व्यापक क्षमता है, लेकिन इसका पर्याप्त रूप से लाभ नहीं उठाया गया है। कम अवधि के पर्यटन को प्रोत्साहन देने और शीघ्रता से वीजा प्रदान करने के मद्देनजर, भारत सरकार ने विदेशी पर्यटकों के लिए 27 नवम्बर, 2014 को ई-पर्यटक वीजा योजना (पुराना नाम: आगमन पर पर्यटक वीजा) का शुभारंभ किया है। अब तक इस योजना को 9 निर्धारित हवाई अड्डों पर 77 देशो के लिए बढ़ा दिया गया है। मंत्रालय की योजना इस सुविधा को 15 अगस्त, 2015 से 7 और हवाई अड्डों तथा 36 और देशों के लिए बढ़ाने की है। इस योजना में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए एक लघु समयावधि पर वीजा प्राप्त करने के इच्छुक लोगों को भी सुविधा दी जाती है। इस योजना ने देश के चिकित्सा पर्यटन पर भी सकारात्मक प्रभाव डाला है। भारत सरकार की इस पहल को जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है। 27 नवम्बर, 2014 को योजना के शुभारंभ के बाद से अब तक करीब दो लाख ई-पर्यटक वीजा जारी किए जा चुके हैं।
1990 में आतंकवाद के कारण अधिकांश कश्मीरी पंडित परिवारों के साथ कुछ सिक्ख और मुसलमानों ने भी कश्मीर घाटी से जम्मू, दिल्ली और देश के अन्य क्षेत्रों में पलायन किया था। वर्तमान में देश में करीब 62,000 पंजीकृत कश्मीरी प्रवासी परिवार हैं (जम्मू में 40,668 परिवार, दिल्ली/राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 19,338 परिवार और अन्य राज्यों में करीब 1995 परिवार हैं)। जम्मू और दिल्ली/राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कश्मीरी प्रवासियों के लिए 1 मई, 2015 से नकद सहायता को प्रति व्यक्ति 1,650 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपये प्रति व्यक्ति/ माह कर दिया गया जो एक परिवार के लिए अधिकतम 10,000 रुपये तक है। इससे पूर्व यह प्रत्येक परिवार के लिए 6,600 रुपये थी। वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान कश्मीरी प्रवासियों के पुनर्वास के लिए 320 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं।
1990 के प्रारंभिक दशक में आतंकवाद के दौरान, अपनी सुरक्षा से जुड़े खतरों के कारण जम्मू क्षेत्र के पहाड़ी इलाकों से कुछ परिवारों ने पलायन आरंभ कर दिया था। यह प्रारंभ में डोडा जिले की पहाडि़यों से प्रारंभ हुआ लेकिन बाद में राज्य के अन्य जिलों में भी फैल गया। जम्मू-कश्मीर सरकार ने वर्ष 2006 में जम्मू प्रवासियों का पंजीकरण प्रारंभ किया था। इसके अंतर्गत राज्य के पांच जिलों डोडा/किश्तवाड़, रियासी, राजौरी, रामबन और पुंछ में 5,698 लोगों के कुल 1,054 परिवार पंजीकृत किए गए हैं। जम्मू और कश्मीर की राज्य सरकार द्वारा जम्मू प्रवासियों के प्रवासी परिवारों को जम्मू, रिसायी, उधमपुर और रामबन में फिर से बसा दिया गया है। गृह मंत्रालय ने कश्मीरी प्रवासियों के समान ही जम्मू डिवीजन के पहाड़ी क्षेत्रों के प्रवासियों के लिए नकद सहायता को स्वीकृति दे दी है। प्रतिवर्ष अनुमानित व्यय 13.45 करोड़ रुपये होगा।
मेरे मंत्रालय ने दिनांक 16 दिसम्बर, 2014 के अपने पत्र के माध्यम से संबंधित राज्य सरकारों/संघशासित प्रदेशों को यह संदेश दे दिया है कि 1984 के सिक्ख विरोधी दंगों के दौरान मारे गए लोगों के परिजनों को प्रति मृतक व्यक्ति के लिए अतिरिक्त पांच लाख रुपये अदा किए जाएंगे। भारत सरकार इस भुगतान की राज्यों/संघशासित प्रदेशों को क्षति पूर्ति कर रही है। इसके अतिरिक्त दंगों के सही मामलों की पुनर्जांच के लिए न्यायाधीश माथुर समिति का गठन कर दिया गया है।
जनवरी 2015 में मैंने जम्मू और कश्मीर राज्य में बसे पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों (डब्ल्यूपीआर) के द्वारा झेली जा रही समस्याओं पर विचार करते हुए निश्चित छूट को भी स्वीकृति दे दी। मैंने सभी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के प्रमुखों (सीएपीएफएस) को निर्देश दे दिया है कि जम्मू और कश्मीर के ऐसे शरणार्थी, जो भारतीय नागरिकों और वैध मतदाता पहचान पत्र रखते हों, का नाम राज्य में चलाए गए विशेष भर्ती अभियानों सहित सुरक्षा बलों में भर्ती के लिए भी विचार किया जाएगा। मैं रक्षा मंत्रालय को भी लिख चुका हूं कि इसी प्रकार की छूट जैसे अधिवास प्रमाणपत्र प्रदान करने की स्थिति से छूट और अन्य पहचान प्रणामपत्र जैसी छूट सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए दी जा सकती है। मैं जम्मू- कश्मीर की राज्य सरकार को भी राज्य में बसे पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों को अधिवास प्रमाणपत्र फिर से जारी करने के लिए एक पत्र लिख चुका हूं ताकि ऐसे लोगों को समान रोजगार अवसर मिल सकें।
जम्मू-कश्मीर के ऐसे पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों के बच्चों को राज्य के केन्द्रीय विद्यालयों में प्रवेश देने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के विद्यालय शिक्षा विभाग को भी निर्देश जारी किए जा चुके हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उच्चतर शिक्षा विभाग को भी इसी प्रकार के समान निर्देश जारी किए जा चुके हैं जिनमें जम्मू-कश्मीर के बाहर के तकनीकी/पेशेवर संस्थानों में प्रवेश के लिए जम्मू-कश्मीर के पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों के बच्चों को और कश्मीर प्रवासियों के बच्चों को उपलब्ध छूट प्रदान की जाए।
जम्मू और कश्मीर के बेरोजगार युवाओं को रोजगार प्रदान करने के उद्देश्य से ‘उड़ान’ योजना के अंतर्गत देश में 3,361 उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया जा चुका है और 3,133 को रोजगारों के प्रस्ताव मिल चुके हैं और करीब 2,500 विभिन्न कम्पनियों में काम कर रहे हैं।
मेरे मंत्रालय ने 16 दिसंबर 2014 को भेजे अपने पत्र में संबंधित राज्य सरकारों /केंद्र शासित प्रदेशों को 1984 के सिख दंगों के दौरान मारे गए व्यक्तियों के निकटतम संबंधियों को प्रति म़ृतक व्यक्ति अतिरिक्त 5 लाख रूपये अदा करने का निर्देश प्रेषित किया है। भारत सरकार राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों को इस राशि की क्षतिपूर्ति कर रही है।
जनवरी 2015 में, मैंने जम्मू कश्मीर राज्य में बसे पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों (डब्ल्यूपीआर) के सामने आने वाली समस्याओं पर विचार करने के बाद कुछ रियायतों को मंजूरी दी थी। मैंने सभी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के प्रमुखों को निर्देश दिया है कि जम्मू कश्मीर के ऐसे डब्ल्यूपीआर, जो भारतीय नागरिक हैं तथा जिनके पास वैध मतदाता सूची है, को राज्य में संचालित विशेष भर्ती अभियानों समेत बलों में भर्ती के लिए विचार किया जाए। मैंने रक्षा मंत्री को पत्र लिखा है कि सशस्त्र बलों में भर्ती के दौरान ऐसी ही रियायतें, जैसे डीसी (निवासी प्रमाण पत्र) तथा अन्य पहचान पत्रों को पेश करने की शर्त से मुक्ति की अनुमति दी जा सकती है। मैंने राज्य में बसे डब्ल्यूपीआर को निवासी प्रमाण पत्र फिर से जारी करने के लिए जम्मू कश्मीर की राज्य सरकार को भी पत्र लिखा है, जिससे कि ऐसे लोगों को रोजगार के समान अवसरों का लाभ उठाने में समर्थ बनाया जा सके।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय में स्कूली शिक्षा विभाग को भी जम्मू और कश्मीर के ऐसे डब्ल्यूपीआर के बच्चों को राज्य में केंद्रीय विद्यालयों में नामांकन के लिए समायोजित करने के लिए निर्देश जारी कर दिए गए हैं। ऐसे ही निर्देश मानव संसाधन विकास मंत्रालय में उच्चतर शिक्षा विभाग को भी जारी किए गए हैं कि जम्मू और कश्मीर के बाहर तकनीकी/व्यावसायिक संस्थानों में नामांकन के लिए कश्मीरी शरणार्थियों के बच्चों को उपलब्ध ऐसी रियायतें जम्मू और कश्मीर के डब्ल्यूपीआर के बच्चों को भी प्रदान किए जाएं।
जम्मू एवं कश्मीर के बेरोजगार युवकों को रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से उड़ान योजना के तहत 3,361 उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया गया है, 3,133 युवकों को रोजगार की पेशकश की गई है और लगभग 2,500 युवक देश की विभिन्न कंपनियों में काम कर रहे हैं।
भारत सरकार और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएल) ने 6 दशकों से अधिक समय तक अस्तित्व में रहे नगा राजनीतिक मुद्दे पर बातचीत को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया तथा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में 3 अगस्त, 2015 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। यह समझौता क्षेत्र में शांति बहाल करेगा और पूर्वोत्तर में समृद्धि के लिए रास्ता प्रशस्त करेगा। यह नगा लोगों के लिए सम्मान, अवसर और समानता को आगे बढ़ाएगा। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के हाल के दौरों समेत कई अवसरों पर इस क्षेत्र में बदलाव लाने के अपने विजन को अभिव्यक्त किया है और उन्होंने इस क्षेत्र की शांति, सुरक्षा, संपर्क और आर्थिक विकास को सर्वाधिक महत्व दिया है। यह क्षेत्र भारत की विदेश नीति, विशेष रूप से ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के केंद्र बिंदु में रहा है।
गृह मंत्रालय ने दिसंबर, 2014 में ‘बड़े और लघु कार्यों, विशेष मरम्मतों, भूमि अधिग्रहण और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) और जांच एजेंसियों के निदेशकों के लिए ‘भवनों/निवास स्थानों को किराए पर लेने’ जैसे विषयों के संदर्भ में वित्तीय अधिकारों में बढ़ोत्तरी कर दिया है। बड़े कार्यों, जिन्हें सीपीडब्ल्यूपी और लोक निर्माण संगठनों द्वारा निष्पादित किया जाता है, के संबंध में वित्तीय अधिकारों को 5 करोड़ रूपए से बढ़ाकर 10 करोड़ रूपए कर दिया गया है। ठीक इसी प्रकार बड़े और लघु विभागीय कार्यों और भूमि अधिग्रहण के लिए अधिकतम सीमा में उल्लेखनीय वृद्धि कर दी गई है। मशीनरी और उपकरणों तथा हथियारों एवं गोला बारूद की खरीद के लिए सीएपीएफ के डीजी को दिए गए वित्तीय अधिकारों को दोगुना बढ़ाकर 20 करोड़ रूपए कर दिया गया है जिससे कि आधुनिकीकरण योजना को युक्तिसंगत बनाया जा सके और संबंधित प्रक्रियाओं में तेजी लाई जा सके। सीएपीएफ की आधुनिकीकरण योजना-ii की मार्च, 2017 तक कुल अनुमानित लागत 11,009 करोड़ रूपए है।
वर्तमान में, अपराधों एवं अपराधिक न्याय से संबंधित सभी जानकारियों का रखरखाव आमतौर पर कागजी रूप में किया जाता है। पुलिस थानों, जिलों और राज्यों के बीच आंकड़ों को साझा करने के मामले में इसकी अपनी सीमाएं होती हैं। इस आंकड़े का डिजिटाइजेशन और अपराधों तथा अपराधियों के एक राष्ट्रीय डाटाबेस का विकास अपराध जांच एजेंसियों की संचालनगत कुशलता को बढ़ाने में मदद करेगा। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मंत्रालय ने 2009 में 2,000 करोड़ रूपए के परिव्यय के साथ क्राइम्स एंड क्रिमिनल्स ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम्स (सीसीटीएनएस) प्रारंभ किया। देश में लगभग 71 प्रतिशत (10,000 से अधिक) पुलिस थानों ने एफआईआर दर्ज करने के लिए सीसीटीएनएस के तहत विकसित सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। 80 प्रतिशत से अधिक पुलिस थानों एवं उच्चतर पुलिस कार्यालयों को ब्रॉडबैंड पर वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) का इस्तेमाल करते हुए इंटरनेट कनेक्शन भी मुहैया कराया गया है। अगले 2 वर्षों के दौरान इस परियोजना को विस्तारित करने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं, जिससे कि शेष तत्वों जैसे कि एक सेंट्रल सिटिजन पोर्टल और एक सेंट्रल डाटाबेस भी विकसित किए जा सके जो नागरिकों को त्वरित गति से उपयुक्त सेवाएं मुहैया कराएगा। इसके लक्षित सेवाओं में शामिल है: 1. अपराध को दर्ज करना। 2. पासपोर्ट की जांच। 3. अन्य प्रकार की पुलिस जांच 4. पीड़ित क्षतिपूर्ति निधि की सुविधा 5. कानूनी सेवाओं की सुविधा 6. मानव तस्करी और खो चुके व्यक्ति 7. वांछित/सर्वाधिक वांछित अपराधों की सूची 8. उद्घोषित अपराधियों की सूची का प्रकाशन 9. महिलाओं के खिलाफ अपराध संबंधी मामलों में आरोप पत्र दाखिल हो चुके अपराधियों की सूची का प्रकाशन। विस्तारित योजना का ई अदालतों और ई जेल आवेदनों के साथ समेकित करने का भी प्रस्ताव है, जिससे कि देश में अपराधिक न्याय प्रणाली की व्यवस्था को कारगर बनाया जा सके। विस्तार के बाद सीसीटीएनएस परियोजना के मार्च, 2017 तक पूर्ण रूप से संचालन योग्य हो जाने की उम्मीद है।
एनडीआरएफ एवं एसडीआरएफ के तहत क्षतिपूर्ति की मात्रा दोगुने से भी अधिक कर दी गई है। जिन किसानों की फसलें 33 फीसदी से 49 फीसदी के बीच नष्ट हो गई हैं, अब उन्हें भी वित्तीय सहायता प्राप्त करने का हकदार बना दिया गया है।
Source: PIB
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