*बहुत बह चुका धैर्य का पानी*
गलवन की गल को भूल गयी,
टिंगू की पी एल ए सेना।
माइनस बीस के तापमान में,
निकल गया था मुंह से फेना।
निकल गया था मुंह से फेना,
हड्डी पसली बन गयी थी चूरा।
मिल रही पटकनी हर बार उसे,
जब जब उसने भारत को घूरा।
धोखेबाजी से वह बाज न आये,
उसकी सेना भी बनी जमूरा।
बहुत बह चुका धैर्य का पानी,
उससे करना होगा बदला पूरा।।
भारत सरकार और सेना को,
एक बार टकराना ही होगा।
बुद्ध की भाषा वह न समझे,
युद्ध की भाषा में बताना होगा।
गफलत में घूम रहा बासठ के,
उसको 22 पर लाना होगा।
लात के भूत बात से न माने,
उनसे न अब बतियाना होगा।
शांति शांति कह कह कर ,
उसकी ही नीति अपनाना होगा ।
जो समझे हरी जिस भाषा को,
उसकी भाषा में ही गाना होगा।।
- हरी राम यादव
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