Sunday, 14 May 2023

Mother’s Day - एक श्रद्धांजलि माँ - राज कादयान

 Mother’s Day - एक श्रद्धांजलि 


                   माँ 


                                    --   राज कादयान                                   


कन्धा तो माँ मेरा भी था, अर्थी तेरी उठाने में

रोती आंखों से तुझ को, शमशान घाट ले जाने में.

यह भी सच है तेरी चिता को, मैंने ही आग लगाई थी

पर वोह तो केवल देह थी तेरी, जिसने मुक्ति पाई थी.


नाम तेरा पत्थर पर, जो भी लिख कर आये हैं

मरना क्या होता है शायद, समझ नहीं वो पाये हैं.

रूप बदलना मौत नहीं है, वोह है केवल देह का अन्त

वोह मरना तो शारीरिक है, काया सब की है अनन्त्.


जीवन की उलझी राहों में, जब भी मैँ खो जाता हूँ

आँख मूंद कन्धे पर तेरे, सिर रख कर सो जाता हूँ.

दोराहे पर जब जब पहुंचूँ , खो जाता हूँ मैं निराश

हाथ मेरा कुच्छ और न ढूंढे,  उँगली तेरी करे तलाश.


शीशे में जब भी मैँ देखूं, नजर मुझे तू आती है

क्या करना है और कब कैसे, सब मुझ को बतलाती है.

रूप मेरे में तू है माँ, तेरा खून रगों में बहता है

झूठा है वोह हर इन्सान, अनाथ मुझे जो कहता है.


पास नहीं है अब तू मेरे, पर अब भी है मेरे साथ

सदा है सिर पर रहता मेरे, आशीर्वाद का तेरा हाथ.

गोद में तेरी बैठ न पाऊं, यह भी बङी निराशा है

कोख तेरी से फ़िर मैँ जन्मूँ , यही एक अभिलाषा है.


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