जय जवान, जय किसान का नारा 1965 के बाद देश के हर बच्चे, बूढ़े और युवा की जबान पर था, बच्चे गलियों में चलते हुए यह नारा लगाया करते थे । एक बच्चा जय जवान बोलता था तो साथ का दूसरा बच्चा जय किसान बोलता था । इस नारे को देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान दिया था, उस समय देश के सैनिक सीमा पर देश की सुरक्षा के लिए लड़ रहे थे और किसान खेतों में अन्न उपजाने के लिए संघर्ष कर रहे थे । उस समय देश को एकजुट और आत्मनिर्भर बनाने की सख्त ज़रूरत थी। शास्त्री जी ने अपने इस नारे के द्वारा किसानों और जवानों दोनों का सम्मान बढ़ाया और देश के नागरिकों को यह एहसास कराया कि जवान और किसान दोनों देश के लिए रीढ़ की हड्डी हैं। इस नारे के द्वारा उन्होंने पूरे देश को एक नई दिशा दी और इस दिशा ने कुछ ही वर्षों में देश की दिशा और दशा बदल कर रख दी। देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भरता की और बढ़ चला और 06 वर्षों बाद ही सन 1971 में देश ने अपनी सैनिक शक्ति के बलबूते पाकिस्तान के दो टुकड़े कर “जय जवान और जय किसान” के नारे को सार्थक कर दिया ।
Wednesday 2 October 2024
जय जवान, जय किसान, जिससे देश बना महान - हरी राम यादव
देश के पहले प्रधानमत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की आकस्मिक मृत्यु के पश्चात शास्त्री जी 09 जून 1964 को देश के प्रधानमंत्री बने । वह अपने सादे जीवन और नैतिक मूल्यों के लिए जाने जाते थे । वे बहुत ही सामान्य जीवन जीते थे और दिखावे से सदैव दूर रहते थे । देश के प्रधानमंत्री होते हुए भी, उनके पास न तो ज्यादा धन-संपत्ति थी और न ही कोई दिखावे वाली जीवनशैली । उनका जीवन एक साधारण व्यक्ति जैसा रहा, कार्यकाल के दौरान मिलने वाले वेतन और भत्ते से ही अपने पूरे परिवार का भरण पोषण करते थे। सच्चाई और इमानदारी उनकी रग रग में बसी थी । एक बार उनके बेटे ने प्रधानमंत्री कार्यालय की गाड़ी का उपयोग कर लिया, जब यह बात शास्त्री जी को पता चली तो उन्होंने सरकारी खाते में गाड़ी जितनी दूर चली थी उसका किराया जमा करवाया। उनके पास न तो खुद का घर था और न ही कोई अन्य संपत्ति। जब उनका निधन हुआ तो उनके पास जमीन जायदाद नहीं बल्कि एक ऋण था, जो उन्होंने प्रधानमंत्री बनने पर कार खरीदने के लिए सरकार से लिया था। इस सरकारी ऋण से उऋण होने के लिए परिवार ने उनकी पेंशन की राशि से यह राशि जमा की। वह हमेश खादी की धोतो और कुर्ता पहनते थे । वह 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। 1965 के भारत पाकिस्तान के मध्य हुए युद्ध में उन्होंने ऐसे ठोस और दूरदर्शी निर्णय लिए कि सैन्य कमांडर भी हतप्रभ थे ।
प्रधानमत्री बनने से पूर्व वह रेल मंत्री, परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री रहे। उनके रेल मंत्री रहते हुए 02 सितंबर, 1956 को आंध्र प्रदेश के महबूबनगर में हुई सिकंदराबाद-द्रोणाचलम पैसेंजर ट्रेन दुर्घटना में 125 लोग मारे गए, इस दुर्घटना के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। देश तथा संसद में उनकी इस अभूतपूर्व पहल को काफी सराहा गया । तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इस घटना पर संसद में बोलते हुए शास्त्री जी की ईमानदारी एवं उच्च आदर्शों की काफी सराहना की। उन्होंने कहा कि उन्होंने “लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया है कि जो कुछ हुआ वे इसके लिए जिम्मेदार हैं बल्कि इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि इससे संवैधानिक मर्यादा में एक मिसाल कायम होगी”। रेल दुर्घटना पर बहस का जवाब देते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने कहा “शायद मेरे लंबाई में छोटे होने एवं नम्र होने के कारण लोगों को लगता है कि मैं बहुत दृढ नहीं हो पा रहा हूँ। यद्यपि शारीरिक रूप से में मैं मजबूत नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि मैं आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ।” ऐसे थे लाल बहादुर शास्त्री । जहाँ आज एक तो क्या चार पांच दुर्घटनाए होने के बाद और नैतिकता के आधार पर इस्तीफ़ा मांगने के बाद भी लोग पद से नहीं हटते ।
लालबहादुर शास्त्री का जन्म 02 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में श्रीमती रामदुलारी और मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहाँ हुआ था। उनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे इसलिए गांव के सब लोग उन्हें मुंशीजी कहते थे। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण गांव के बड़े बुजुर्ग लालबहादुर शास्त्री को प्यार में नन्हें कहकर बुलाया करते थे। अठारह महीने की छोटी सी उम्र में इनके पिता का निधन हो गया। पिता के निधन के पश्चात उनकी माँ श्रीमती रामदुलारी अपने मायके मिर्ज़ापुर चली गयीं। कुछ समय बाद उसके नाना का भी निधन हो गया । शास्त्री जी की परवरिश करने में उसके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने उनकी माँ का बहुत सहयोग किया। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा अपने ननिहाल के गांव में ग्रहण की और उसके पश्चात उनकी आगे की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। काशी विद्यापीठ से जब उन्हें शास्त्री की उपाधि मिली तब उन्होंने अपने नाम के पीछे से श्रीवास्तव शब्द हमेशा हमेशा के लिये हटा दिया और नाम के साथ 'शास्त्री' लगा लिया। इसके पश्चात् शास्त्री शब्द उनके नाम का पर्याय बन गया। सन 1927 में उनकी शादी मिर्जापुर की ललिता देवी से हुई । इनके परिवार में इनके चार बेटे – हरिकृष्ण शास्त्री , सुनील शास्त्री , अनिल शास्त्री तथा अशोक शास्त्री एवं दो बेटियां कुसुम शास्त्री और सुमन शास्त्री हैं । सन 1966 में भारत सरकार द्वारा उन्हें भारत रत्न से विभूषित किया गया ।
वर्तमान समय में सत्ता और विपक्ष में बैठे देश के नीति निर्माताओं को लाल बहादुर शास्त्री के जय जवान, जय किसान के 60 वर्ष पहले दिए नारे के बारे में गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। यह एक बहुत ही दूरदर्शी नारा है। जिस देश की सीमा पर खड़ा जवान और देश के लिए अन्न उपजाने वाला किसान सुखी और सम्पन्न है, समझो वह पूरा देश सुखी है, समाज में इन दोनों के चेहरे पर खुशहाली लाए बिना देश को विकसित और खुशहाल नहीं बनाया जा सकता। इन दोनों वर्गों की समस्याओं के समाधान का रास्ता तलाशना ही होगा। शास्त्री जी का यह नारा आज भी सार्वभौमिक, सर्वकालिक और संसार के सभी देशों के लिए ग्राह्य है।
हरी राम यादव
7087815074
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