Saturday 30 May 2015

OROP : वन रँक वन पेन्शन’ म्हणजे काय?

मुंबई : जवान आपल्या प्राणांची बाजी लावून देशाची सेवा करतात. मात्र, निवृत्तीनंतरच्या आयुष्यात त्यांना अत्यंत हलाखीचे जीवन जगावं लागतं... जगण्यासाठी त्यांना संघर्ष करावा लागतो. त्यामुळे अशा सैनिकांना पेन्शन हे एकमेव आधार ठरतं. मात्र, या पेन्शनमध्येही अनेक निवृत्त सैनिकांवर अन्याय होतो. अशा सैनिकांसाठी वन रँक वन पेन्शन’ ही योजना महत्त्वाची ठरु शकते.

लोकसभा निवडणुकीच्या तोंडावर काँग्रेसचे उपाध्यक्ष राहुल गांधी यांनी ‘वन रँक वन पेन्शन’ लागू करण्याची घोषणा केली होती. त्यानंतर तत्कालीन अर्थमंत्री पी. चिदंबरम यांनी अर्थसंकलात या योजनेसाठी तरतूदही केली होती. निवडणुकीच्या प्रचारादरम्यान नरेंद्र मोदींनीही माजी सैनिकांची ही मागणी सत्तेत आल्यावर पूर्ण करू, असे आश्वासन दिले होते. मोदी सरकार सत्तारूढ झाले. मात्र, योजनेकडे मोदी सरकारनंही दुर्लक्ष केले. त्यानंतर विरोधक म्हणून राहुल गांधींनी पुन्हा या योजनेचा पाठपुरावा करण्यासा सुरुवात केली आहे.

याचदरम्यान, माजी सैनिकांनी शुक्रवारी ‘वन रँक वन पेन्शन‘साठी आंदोलन केले. तसेच काही दिवसांपूर्वी काँग्रेसचे उपाध्यक्ष राहुल गांधींचीही माजी सैनिकांनी भेट घेतली होती. त्यामुळे पंतप्रधान मोदींनीही हे सर्व गंभीरपणे घेतले आणि स्वत: पंतप्रधान मोदींनी ट्विटरवरून ‘वन रँक वन पेन्शन‘सुरू करण्याबाबत सरकार कटिबद्ध असल्याचे सांगितले आहे. तसेच ही योजना लागू करण्याबाबत कोणच्याही मनात शंका नसल्याचे म्हटले आहे. शिवाय संरक्षणंत्री मनोहर पर्रिकरांनीही पुण्यात या योजनेबाबत माजी सैनिकांना आश्वसन दिले आहे.

‘वन रँक वन पेन्शन’ म्हणजे काय?

वन रँक वन पेन्शन म्हणजे वेगवेगळ्या वर्षी निवृत्त झालेल्या मात्र एकाच रँकच्या सैनिकांच्या पेन्शनच्या रकमेत जास्त फरक नसावा किंबहुना ती रक्कम सारखीच असावी. सध्या परिस्थिती अशी आहे की, आधी निवृत्त झालेल्या एकाच रँकच्या लष्करी अधिकाऱ्याला कमी पेन्शन आणि नंतर निवृत्त झालेल्या त्याच रँकच्या अधिकाऱ्याला जास्त पेन्शन मिळतं.

हे कसं ते आपण एका उदाहरणावरुन पाहूया. 2006 साली निवृत्त झालेल्या मेजर जनरलची पेन्शन 30,300 रुपये आहे, तर आता कुणी कर्नल निवृत्त झाल्यास त्याला 34,000 रुपये पेन्शन मिळते. वस्तुत: मेजर जनरल हा कर्नल पदाच्या दोन रँक वरचा अधिकारी असतो.

एकाच रँकच्या पेन्शनमधील ही असमानता केवळ लष्करी अधिकाऱ्यांपर्यंतच मर्यादित नाही. तर शिपाई, नाईक आणि हवालदार रँकचे सैनिकही या असमानतेला बळी पडले आहेत.

वन रँक वन पेन्शन म्हणजे सेवनिवृत्त सैनिकांना आता समान पेन्शन असेल. देशात दरवर्षी सुमारे 65 हजार सैनिक निवृत्त होतात. म्हणजेच देशात या घडीला 25 लाख निवृत्त सैनिक आहेत.

‘वन रँक वन पेन्शन’साठी याआधीही प्रयत्न

गेल्या अनेक वर्षांपासून ‘वन रँक वन पेन्शन’ योजनेची सेवानिवृत्त सैनिकांकाडून मागणी होत आहे. सुमारे 30 वर्षांपूर्वी निवृत्त सैनिकांनी निवृत्त सैनिकांची एक संघटना बनवली होती. मात्र सातत्याने मागणी करुनही सरकारने सैनिकांच्या मागणीकडे दुर्लक्ष केलं. मात्र 2008 मध्ये इंडियन एक्स सर्व्हिसमन मूव्हमेंट (IESM) नावाच्या संघटनेने योजनेसाठीचं आंदोलन अधिक तीव्र केलं.

2009 मध्ये तर सैनिकांनी उपोषणही सुरु केलं होतं. तत्त्कालिन राष्ट्रपतींकडे आंदोलक सैनिकांनी आपापली पदकं परत केली होती. एवढंच नव्हे, तर दीड लाख माजी सैनिकांनी रक्ताची स्वाक्षरी करुन तत्कालिन राष्ट्रपती प्रतिभा पाटील यांना पत्र पाठवलं होतं. दरम्यान, पंजाब आणि हिमाचल प्रदेशच्या राज्य सरकारनी ‘वन रँक वन पेन्शन’ योजनचं प्रस्ताव मंजूर करुन सैनिकांच्या मागणीला समर्थन दिलं होतं.
 

2014 च्या निवडणुकीत प्रचारादरम्यान नरेंद्र मोदींनीही सैनिकांच्या समान पेन्शनचा म्हणजेच ‘वन रँक वन पेन्शन’चा मुद्दा उचलला होता. एकाच रँकच्या सैनिकांना समान पेन्शन देण्याचं आश्वासन मोदींनी दिलं होतं. विशेष म्हणजे मोदींची पंतप्रधानपदाचा उमेदवार म्हणून घोषणा झाल्यानंतर पहिल्याच सभेत त्यांनी सैनिकांच्या निवृत्तीवेतनाच्या मुद्द्यावर भाष्य केलं होतं. मात्र मोदी सरकार सत्तारुढ होऊन एक वर्ष उलटला तरीही अद्याप ‘वन रँक वन पेन्शन’ योजनेबद्दल मोदींनी चकार शब्दही काढला नव्हता. मात्र गेल्या काही दिवसांपासून राहुल गांधी ‘वन रँक वन पेन्शन’साठी सरकारकडे पाठपुरावा करत आहेत. या मुद्द्यावर मोदींवर टीकेची झोड उठवत आहेत. त्यामुळेच स्वत: पंतप्रधान मोदींनी ट्विटरवरुन ‘वन रँक वन पेन्शन‘सुरू करण्याबाबत सरकार कटिबद्ध असल्याचे सांगितले आहे.
 

By  नामदेव काटकर, एबीपी माझा, मुंबई
Saturday, 30 May 2015 03:52 PM 

Friday 15 May 2015

Sainik Darpan May 2015


प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना



युवा सशक्‍तिकरण की नई दिशा


       किसी भी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए कौशल और ज्ञान दो प्रेरक बल हैं। वर्तमान वैश्‍विक माहौल में उभरती अर्थव्‍यवस्‍थाओं की मुख्‍य चुनौती से निपटने में वे देश आगे हैं जिन्‍होंने कौशल का उच्‍च स्‍तर प्राप्‍त कर लिया है।



 किसी भी देश में कौशल विकास कार्यक्रम के लिए मुख्‍य रूप से युवाओं पर ही जोर होता है। इस मामले में हमारा देश अच्‍छी स्‍थिति में है। जनसंख्‍या का एक बड़ा हिस्‍सा उत्‍पादक आयु समूह में है। यह भारत को सुनहरा अवसर प्रदान करता है, परंतु एक बड़ी चुनौती भी पेश करता है। हमारी अर्थव्‍यवस्‍था को इसका लाभ तभी मिलेगा जब हमारी जनसंख्‍या विशेषकर युवा स्‍वस्‍थ, शिक्षित और कुशल होगी।



भारत के पास एक अतुलनीय युवा जनसंख्‍या है जिससे आने वाले समय में सामाजिक-आर्थिक विकास को जोरदार बढ़ावा मिलना तय है। हमारे पास 60.5 करोड़ लोग 25 वर्ष से कम आयु के हैं। रोजगार के लिए उपयुक्‍त कौशल प्राप्‍त करके ये युवा परिवर्तन के प्रतिनिधि हो सकते हैं। वे न केवल अपने जीवन को प्रभावित करने के काबिल होंगे बल्‍कि दूसरों के जीवन में भी बदलाव ला सकेंगे।



हाल में ही मंजूर की गई प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) युवाओं के कौशल प्रशिक्षण के लिए एक प्रमुख योजना है। इसके तहत पाठ्यक्रमों में सुधार, बेहतर शिक्षण और प्रशिक्षित शिक्षकों पर विशेष जोर दिया गया है। प्रशिक्षण में अन्‍य पहलुओं के साथ व्‍यवहार कुशलता और व्‍यवहार में परिवर्तन भी शामिल है।



नवगठित कौशल विकास और उद्यम मंत्रालय राष्‍ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) के माध्‍यम से इस कार्यक्रम को क्रियान्वित कर रहा है। इसके तहत 24 लाख युवाओं को प्रशिक्षण के दायरे में लाया जाएगा है। कौशल प्रशिक्षण नेशनल स्‍किल क्‍वालिफिकेशन फ्रेमवर्क (एनएसक्‍यूएफ) और उद्योग द्वारा तय मानदंडों पर आधारित होगा। कार्यक्रम के तहत तृतीय पक्ष आकलन संस्‍थाओं द्वारा मूल्‍यांकन और प्रमाण पत्र के आधार पर प्रशिक्षुओं को नकद पारितोषिक दी जाएगी। नकद पारितोषिक औसतन 8,000 रूपए प्रति प्रशिक्षु होगी।



कौशल प्रशिक्षण एनएसडीसी द्वारा हाल ही में संचालित कौशल अंतर अध्‍ययनों के जरिए मांग के आकलन के आधार पर दिया जाएगा।



केन्द्र और राज्य सरकारों, उद्योग और व्यावसायिक घरानों से विचार विमर्श कर भविष्‍य की मांग का आकलन किया जाएगा। इसके लिए एक मांग समूहक मंच भी शुरू किया जा रहा है।



कौशल विकास के लक्ष्‍य निर्धारित करते समय हाल में ही लागू किये गय प्रमुख कार्यक्रम जैसे कि 'मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, राष्‍ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन और स्‍वच्‍छ भारत अभियान के मांगों को भी ध्‍यान में रखा जाएगा।



प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत मुख्‍य रूप से श्रम बाजार में पहली बार प्रवेश कर रहे लोगों पर जोर होगा और विशेषकर कक्षा 10 व 12 के दौरान स्‍कूल छोड़ गये छात्रों पर ध्‍यान केंद्रित किया जाएगा। योजना का क्रियान्‍वयन एनएसडीसी के प्रशिक्षण साझेदारों द्वारा किया जाएगा। वर्तमान में लगभग 2,300 केंद्रों के एनएसडीसी के 187 प्रशिक्षण साझेदार हैं। इनके अलावा केंद्र व राज्‍य सरकारों से संबंधित प्रशिक्षण प्रदाता संस्‍थाओं को भी इस योजना के तहत प्रशिक्षण के लिए जोड़ा जाएगा। सभी प्रशिक्षण प्रदाताओं को इस योजना के लिए योग्‍य होने के लिए एक जांच प्रक्रिया से गुजरना होगा। पीएमकेवीवाई के तहत सेक्‍टर कौशल परिषद व राज्‍य सरकारें भी कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों की निगरानी करेंगे।



योजना के तहत एक कौशल विकास प्रबंधन प्रणाली (एसडीएमएस) भी तैयार की जाएगी जो सभी प्रशिक्षण केंद्रों के विवरणों और प्रशिक्षण व पाठ्यक्रम की गुणवत्‍ता की जांच करेगी और उन्हें दर्ज भी करेगी। जहां तक संभव होगा प्रशिक्षण प्रक्रिया में बायोमिट्रिक सिस्‍टम व वीडियो रिकार्डिंग भी शामिल की जाएगी जो पीएमकेवीआई से जानकारी ली जाएगी जो पीएमकेवीआई की प्रभावशीलता का मूल्‍यांकन का मुख्‍य आधार होंगे। शिकायतों के निपटान के लिए एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र भी शुरू किया जाएगा। इसके अलावा कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार के लिए एक ऑनलाइन नागरिक पोर्टल भी शुरू की जाएगी।



कुल 1120 करोड़ रुपए के परिव्यय से 14 लाख युवाओं को प्रशिक्षित किया जाएगा और इसमें पूर्व शिक्षा-प्रशिक्षण को चिह्नित करने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। इस मद में 220 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। युवाओं को जुटाने तथा जागुरुकता फैलाने के लिए 67 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। युवाओं को कौशल मेलों के जरिए जुटाया जाएगा और इसके लिए स्थानीय स्तर पर राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों, पंचायती राज संस्थाओं और समुदाय आधारित संस्थाओं का सहयोग लिया जाएगा।



      कौशल व उद्यम विकास वर्तमान सरकार की उच्च प्राथमिकताओं में शामिल है। नवगठित कौशल व उद्यम विकास मंत्रालय की '' मेक इन इंडिया'' अभियान के लक्ष्यों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका है। यह अभियान भारत को एक विनिर्माण केन्द्र के रूप में परिवर्तित करने के लिए अहम पहल है। विकासशील अर्थव्यवस्था के विनिर्माण क्षेत्र समेत सभी क्षेत्रों की मांग के अनुसार प्रशिक्षित कार्यबल तैयार करने में इस मंत्रालय की अहम भूमिका है।



      इस दिशा में उठाये गए सभी उपायों को शामिल करने के लिए एक नयी राष्ट्रीय कौशल व उद्यम विकास नीति भी तैयार की गयी है। इस नीति के जरिए उच्च गुणवत्ता वाले कार्यबल के साथ विकास को बढ़ावा देने की रूपरेखा तैयार की जा रही है। वर्ष 2022 तक 50 करोड़ लोगों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है।



      इस दिशा में प्रयास मिशन के तौर पर किया जा रहा है। राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन के तहत तीन संस्थान कार्य कर रहे हैं। राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कौशल विकास प्रयासों को नीतिगत दिशा दे रही है और इनकी समीक्षा भी कर रही है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कौशल विकास समन्वय प्रधानमंत्री की परिषद के नियमों को लागू करने के लिए रणनीतियों पर कार्य कर रहा है। एनएसडीसी एक गैर-लाभ कंपनी है और गैर संगठित क्षेत्र समेत श्रम बाजार के लिए कौशल प्रशिक्षण की जरुरतों को पूरा कर रही है। 



भारत ने विश्व में सबसे तेजी से विकास कर रही अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी पहचान बना ली है। उम्मीद है कि भारत शीघ्र ही विश्व की तीन सबसे बड़े अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो जाएगा। वर्ष 2020 तक भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा विनिर्माण केन्द्र भी बन जाएगा। जनसंख्या के सकारात्मक कारकों और उच्च गुणवत्ता वाले कार्यबल की सतत उपलब्धता की मदद से हमारा देश विश्व अर्थव्यवस्था में विशेष छाप छोड़ सकता है।



 भविष्य के बाजारों के लिए कौशल विकास से लेकर मानव संसाधन विकसित करने के लिए हाल में ही घोषित प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना से अवश्य ही हमारी अर्थव्यवस्था को पूर्ण लाभ मिलेगा। नई नीति के तहत मिशन के तौर पर लागू की गई यह योजना मानव संसाधन और उद्योग के विकास में एक नए युग की शुरुआत करेगी।


सुश्री अर्चना दत्ता एक स्वतंत्र लेखिका हैं और पूर्व महानिदेशक, डीडी न्यूज और महानिदेशक, एनएसडी (एआईआर) हैं।


परम्परागत मीडिया के एकाधिकार को चुनौती देगा सोशल मीडिया


 प्राचीन काल से ही सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए कई अनेक रोचक एवं अनोखे तरीके अपनाए जाते रहे हैं। आज वह एक कहानी की तरह लगती है। बीते दशकों में संचार टेक्नोलॉजी में आए चमत्कारिक परिवर्तन का सर्वाधिक फायदा सूचना जगत को हुआ है और मीडिया की इस पर निर्भरता बढ़ गई है। स्कॉटलैण्ड के अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने 1876 मे ‘टेलीफ़ोन’ का आविष्कार किया तो इसे मानव के प्रगतिशील विकास की राह में यह एक क्रांतिकारी कदम माना गया। तकनीकी विकास के कारण आज दुनिया मुट्ठी में समा गई है। चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा इंटरनेट यूजर्स देश है। प्रत्येक पांचवी ऊंगली इंटरनेट के बटन पर है। जाहिर तौर पर आज पत्रकारिता पूरी तरह सूचना तकनीकी पर आश्रित है। ई-कम्यूनिकेशन का दौर शुरू हो चुका है। अब वेबसाइट, ई-मेल, यूट्यूब, सोशल साइट, ट्विटर, ब्लॉग जैसे ई-कम्युनिकेशन माध्यम पारंपरिक मीडिया को चुनौती देते दिखाई दे रहे हैं। आज के दौर में पत्रकारिता सूचना और मनोरंजन के मुख्य स्त्रोत बन गए हैं। लोग अखबार इंटरनेट और मोबाइल पर पढ़ रहे हैं। सोशल साइट का प्रयोग दिनों दिन बढ़ रहा है। वर्तमान में 2.7 बिलियन  से ज्यादा वेबपेज रोजाना सर्च हो रहे हैं। अमेरिका का युवा कागज पर छपा अखबार नहीं पढ़ रहा बल्कि वह अखबार की जगह नेट पर गूगल समाचार में एक ही जगह तमाम अखबारों की सुर्खियां देख ले रहा है। आज गूगल समाचार के कारण यूरोप और अमेरिका में अखबारो की संख्या और राजस्व दोनों गिर रहे हैं।

तेजी से बदलती तकनीकी ने पत्रकारिता का पारंपरिक चेहरा बदल दिया  है। आधुनिकता और प्रतिस्पर्धा के इस दौर में जहां पहले से खबरों की स्रोतों के इतने सारे माध्यम मौजूद थे, वहाँ ‘सोशल मीडिया’ ने सबको पछाड़ते हुए अपनी ‘अद्वितीय-पहचान’ बना ली है। ‘सोशल मीडिया’ लोगों की पहली पसंद बन गया है। इसका सीधा मतलब  है ‘जनता की अपनी आवाज़’। वो आवाज़ जो उसके अपने लोगों से ही निकाल कर उसे सुनाई जाती है। न कोई चैनल…….न कोई अखबार….. सिर्फ आप की खुद की आवाज़, आपकी खबरों के ज्ञान का भंडार। जो सूचनायें परंपरागत मीडिया का हिस्सा नहीं बन पाती, वह आज सोशल मीडिया की सुर्खियां बन 'वायरस' फैला रही हैं। इंटरनेट की दुनिया में लोगों के पास असंख्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म उपलब्ध हैं, जहां लोग एक-दूसरे से आसानी से संपर्क बना सकते है। अपनी सूचनाओं एवं खबरों को सरलता से आपस में साझा कर सकते हैं। उनमें से सबसे प्रचलित फेसबुक और ट्विटर हैं। फेसबुक से पहले गूगल परिवार का ‘ऑर्कुट’ सोशल प्लेटफ़ार्म का सबसे बड़ा नाम था पर ‘एफ़बी’ के करिश्माई प्रभाव ने इस साल उसके अस्तित्व को ही खत्म कर दिया। गूगल ने ऑर्कुट की सेवाएं एकदम से समाप्त कर दी। आज फेसबुक लोगों की (विशेष तौर पर ज़्यादातर भारतीयों की) पहली पसंद है। दूसरा नंबर आता है ट्विटर का जिसे ‘सेलेब्रिटियों का अड्डा’ भी कहा जाता है। नेता से लेकर अभिनेता एवं जानी-मानी हस्तियाँ सब आपको ‘ट्विटर’ पर मिलेंगे वो भी ‘ओरिजिनल’! हाल में दावोस में संपन्न हुए वर्ल्ड इकोनामिक फोरम में गूगल के प्रमुख एरिक स्मिथ ने यह कह कर दुनिया को और उत्साहित कर दिया कि बहुत जल्द इंटरनेट जिन्दगी के हर पहलू में इतना रच बस चुका होगा कि यह ब्रॉडबैंड में गुम हो जायेगा। आपके इर्द-गिर्द इतने सारे सेंसर और डिवाइस होंगी कि आपके लिए उन्हें पता लगाना तक मुश्किल हो जायेगा।
यह सवाल परेशान कर सकता है कि मीडिया के इतने साधनों के बाद भी ‘सोशल मीडिया’ अस्तित्व मे क्यों आया ? क्या पहले से मौजूद मीडिया के स्रोत निरर्थक और असक्षम हो गए थे जो सोशल मीडिया का जन्म हुआ ?  असल मे आत्म-चिंतन और अवलोकन तो प्रिंट और टीवी मीडिया वालों को करना चाहिए जिनकी निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर बार-बार दाग लगे हैं। शायद उसी ‘दाग’ को साफ करने के लिए ‘सोशल मीडिया’ ने जन्म लिया। लोकतंत्र के महत्वपूर्ण अंग की नीलामी को रोकने के लिए ही ‘सोशल मीडिया’ अस्तित्व मे आयी दिखती है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल भारत में फेसबुक और ट्विटर पर सक्रिय सदस्यों की संख्या 33 मिलियन से अधिक हैं। ये आंकड़ें अचंभित करने वाले हैं। सोचिए, इतने सारे लोगो के बीच सूचनाओँ के आदान-प्रदान की सीमा क्या होगी ? भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार पिछले कुछ वर्षो मे ‘सोशल मीडिया’ ने भारत मे ‘गेम-चेंजर’ की तरह काम किया है। राजनीति, व्यापार, शिक्षा और मनोरंजन की क्षेत्र मे ‘सोशल मीडिया’ ने अपनी अद्भुत्त शक्ति दिखाई है।

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के एक अधिवेशन में राहुल गांधी ने सोशल मीडिया की अहमियत का उल्लेख किया। बाद में तत्कालीन सरकार ने इसके लिए बजटीय प्रावधान भी किया। नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की लोकसभा चुनावों मे अप्रत्याशित जीत मे वेब (सोशल) मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण थी। प्रधानमंत्री मोदी ने भी सोशल मीडिया के महत्व की कई मंचों पर स्वीकृति दी है। जिस ‘मोदी लहर’ की मीडिया वाले आए-दिन अपनी ‘न्यूज़-डिबेट’ मे चर्चा करते है, उस लहर को आक्रामक बनाने मे ‘सोशल मीडिया’ की अहम भूमिका रही है।

‘अबकी बार, मोदी सरकार’  ‘हर हर मोदी…घर घर मोदी’ जैसे विवादास्पद नारे भी सोसल मीडिया के ही हिस्से थे। लोकसभा चुनावों में सोशल मीडिया के प्रभाव को अध्ययन करने पर कई चौंकानें वाले तथ्य एवं आंकड़े सामने आए है। लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद केवल फेसबुक पर 29 मिलियन लोगों ने 227 मिलियन बार चुनाव से संबन्धित पारस्परिक क्रियाएं (जैसे पोस्ट लाइक, कमेंट, शेयर इत्यादि) की। इसके अतिरिक्त 13 मिलियन लोगों ने 75 मिलियन बार केवल नरेंद्र मोदी के बारे में बातचीत की। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि 814 मिलियन योग्य मतदाताओं वाले देश (भारत) में सोशल मीडिया का प्रचार का पैमाना लोकसभा चुनावों के दौरान व्यापक था।
अन्ना हज़ारे और आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल को ब्रांण्ड बनाने में सोशल मीडिया का अहम योगदान रहा है। देश –दुनिया में जुनून पैदा करने वाले अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की सफलता में सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह सोशल मीडिया का ही करिश्मा था कि छोटी सी चिंगारी को उसने जनाक्रोश में तब्दील कर दिया था। तत्कालीन यूपीए सरकार दबाव में आ गयी थी। सरकार ने भी सोशल मीडिया की शक्ति को स्वीकारा था। सोशल मीडिया सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई मे एक ‘मेसेंजर’ के तौर पर उतरा है। लोगों की आवाज़ को सरकार तक पहुंचाने मे सोशल मीडिया सक्रिय रहा है। सोशल मीडिया ने सामाजिक कुरुतियों को उजागर करने और जागरूकता फैलाने में भी अहम भूमिका निभाई है। सोशल मीडिया सरकार पर दबाव बनाने का प्रभावकारी जरिया बन गया है। ‘आरुषि-हेमराज’ हत्याकांड, ‘दामिनी बलात्कार कांड’, गीतिका-गोपाल कांड़ा’ जैसे अनेक मामलों में सोशल मीडिया ने इंसाफ की जंग लड़ी है।

दिल्ली का दिल दहला देने वाले दामिनी बलात्कार कांड को लेकर सबसे ज्यादा आक्रोश सोशल मीडिया पर ही दिखा। यह सोशल मीडिया का ही प्रभाव था कि तत्कालीन सरकार ने आनन-फानन मे उक्त घटना के बाद कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए। पूरा देश और सोशल मीडिया दामिनी के साथ खड़ा था। देश-विदेश से ऐसी घटनाओं के खिलाफ माहौल बनाने का पूरा श्रेय भी इसी माध्यम को जाता है। सोशल मीडिया को जिस तरह से स्वीकृति मिल रही है उससे कहा जा सकता है कि भूतकाल कीर्तिमय था, वर्तमान समृद्ध है, भविष्य उज्ज्वल और यशस्वी होगा। जिस तरह से आज समाज के हर वर्ग ने सोशल मीडिया को अपनी स्वीकृति दी है, उससे इसकी ‘स्वीकार्यता’ और ‘उपयोगिता’ जाहिर तौर पर अन्य मीडिया माध्यमों के लिए एक गंभीर चुनौती के तौर पर उभरी है। इसके बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर मीडिया हाउसों के रणनीतिकार अपनी व्यापारिक और पेशेवर रणनीतियों में बदलाव को मजबूर हुए हैं।

उधर, परंपरागत मीडिया के प्रभावी माध्यम माने जाने वाले टेलीविजन को आम जनता देखती है। उसे कोसती भी है। क्या इसे हम टीवी चैनलों की विश्वसनीयता पर संकट कहें ? टीवी चैनलों के आने के बाद जो कुछ गलत हो रहा था, उसे लोगों के बीच में लाने का काम शुरू हुआ। आने वाले समय में सोशल मीडिया एक प्रभावकारी और भरोसेमंद तथा त्वरित पत्रकारिता का स्थान लेगी। पश्चिमी देशों में ऐसा होने लगा है। सोशल और यहां तक कि टीवी पत्रकारिता ने बहुत बड़ी क्रांति ला दी है। इसने अभिजात्य संस्कृति को ध्वस्त किया है। सामंतवादी सोच को बदला है और जमीनी स्तर तक लोकतंत्र को फैलाया है। 

वेबसाईट, ईमेल, ब्लॉग, सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटस, जैसे माइ स्पेस, आरकुट,फेसबुक आदि, माइक्रो ब्लागिंग साइट टि्वटर, ब्लाग्स, फॉरम, चैट वैकल्पिक मीडिया का हिस्सा हैं

अग्नि-३ स्वदेशी बॅलिस्टिक क्षेपणास्त्राची यशस्वी चाचणी

ओडिशाच्या लष्करी तळावर अग्नि-३  स्वदेशी बॅलिस्टिक क्षेपणास्त्राची  यशस्वी चाचणी

बालासोर (ओडिशा) : भारताने ओडिशाच्या लष्करी तळावर अण्वस्त्रे  वाहून नेण्यास सक्षम असलेल्या अग्नि-३  या स्वदेशी बॅलिस्टिक क्षेपणास्त्राची  यशस्वी चाचणी घेतली. ओडिशाच्या   व्हिलर बेटावर  गुरुवार दिनांक १६ एप्रिल २०१५ सकाळी ९ वाजून ५५  मिनिटाला जमिनीवरून जमिनीवर  मारा करणारे हे क्षेपणास्त्र डागले गेले. काहीच क्षणात त्याने अचूक लक्ष्यभेद  केला. स्वदेशी बनावटीचे हे क्षेपणास्त्र  ३००० कि.मी.वरील लक्ष्याचा अचूक वेध  घेऊ शकते. ही नेहमीची उपयोजित  चाचणी असल्याचे, आयटीआर संचालक  एम.व्ही.के.व्ही. प्रसाद यांनी  सांगितले. ही चाचणी अग्नि-३ शृंखलेची  तिसरी चाचणी असल्याचे संरक्षण  संशोधन व विकास संघटनेच्य  अधिकाऱ्याने सांगितले. १७ मीटर लांब या क्षेपणास्त्राचा  व्यास दोन मीटर आहे. प्रक्षेपणावेळी  याचे वजन सुमारे ५० टन आहे. हे  क्षेपणास्त्र आपल्यासोबत १.५ टन  अण्वस्त्रे वाहून नेण्यास सक्षम आहे. लष्करात आधीच समाविष्ट करण्यात  आलेल्या या क्षेपणास्त्रवर अत्याधुनिक  हायब्रिड दिशादर्शक, मार्गदर्शक व  नियंत्रण प्रणाली लागलेल्या आहेत. अग्नि-३ चे पहिले विकासात्मक परीक्षण  ९ जुलै २००६ रोजी करण्यात आले होते. मात्र त्यात अपेक्षित यश मिळाले  नव्हते. यानंतर १२ एप्रिल २००७, ७ मे  २००८ आणि ७ फेबु्रवारी २०१० रोजी याच्या यशस्वी चाचण्या घेण्यात आल्या.२१ सप्टेंबर २०१२ रोजी अग्नि-३ ची  पहिली उपयोजित चाचणी पार पडली. यानंतर २३ डिसेंबर २०१३ रोजी दुसरी  चाचणीही यशस्वी राहिली.